कोरोना वायरस: आखिर…अमेरिका ने ऐसी कौन-सी गलती कर दी, जिससे 2 लाख लोगों की हो सकती है मौत

दुनियाभर में कोरोना वायरस से संक्रमण लोगों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। दुनिया का सबसे ताकतवर कहा जाने वाला देश अमेरिका भी इसकी चपेट में बुरी तरह फंस गया है। अमेरिका में कोरोना वायरस से अब तक 4000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में अमेरिका चीन और इटली को भी पीछे छोड़ चुका है। हालांकि, स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि अभी अमेरिका में कोरोना वायरस का भयंकर रूप सामने आना बाकी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी आने वाले दो हफ्तों को मुश्किल बताया है।
वहीं, व्हाइट हाउस के अधिकारियों ने भी आशंका जताई है कि कोरोना वायरस से अमेरिका में 1 से 2 लाख लोगों की जान जा सकती हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिरकार अमेरिका से चूक कहां पर हो गई? मेडिकल सप्लाई का संकट अमेरिका में मास्क, ग्लव्स, गाउन्स और वेंटिलेटर्स की भयंकर कमी पड़ रही है। अस्पताल और डॉक्टरों के पास संक्रमण से पर्याप्त सुरक्षा देने वाले उपकरण नहीं हैं। कई स्वास्थ्यकर्मी सैनिटरी के सामान को दोबारा इस्तेमाल करने को मजबूर हैं तो कुछ अपने स्तर पर मास्क बना रहे हैं। सबसे बड़ी चिंता वेंटिलेटर्स की कमी को लेकर है।
न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रू कूमो ने इसे लेकर शिकायत की। उन्होंने कहा, मेडिकल उपकरणों को सबसे पहले पाने के लिए केंद्र सरकार और तमाम राज्यों के बीच होड़ शुरू हो गई है जिससे इनकी कीमतें बढ़ गई हैं। कूमो ने कहा, ये वैसा ही है जैसे eBay पर एक वेंटिलेटर को खरीदने के लिए 50 राज्य कतार में हों। जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में हेल्थ पॉलिसी ऐंड मैनेजमेंट के प्रोफेसर जेफरी लेवी ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ऐसी स्थिति नहीं बननी चाहिए थी। अमेरिकी सरकार समय रहते जरूरी मेडिकल उपकरण की पर्याप्त आपूर्ति नहीं कर सकी। जब कोरोना का संकट बढ़ा तब भी सरकार ने बहुत धीमी गति से काम किया और मेडिकल उपकरणों के उत्पादन बढ़ाने में हफ्तों गंवा दिए। सरकार ने उत्पादन बढ़ाने में अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल भी नहीं किया।
टेस्टिंग में देरी प्रोफेसर लेवी के मुताबिक, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों की तरह कोरोना के शुरुआती दौर में ही ज्यादा टेस्टिंग कराना ही इसकी रोकथाम का सबसे कारगर तरीका है। ऐसा ना कर पाना अमेरिकी सरकार की सबसे बड़ी गलती थी। इससे अमेरिका में कोरोना महामारी ने भयावह रूप ले लिया। वह कहते हैं, किसी भी महामारी से निपटने के लिए आपको ये पता होना चाहिए कि कहां क्या चल रहा है। ये जानकारी नहीं है तो समझिए कि आप अंधेरे में तीर चला रहे हैं। आपको पता ही नहीं होगा कि वायरस का अगला हॉटस्पॉट कौन सी जगह बनने वाली है। आपको ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग करानी चाहिए क्योंकि इससे संक्रमित मरीजों की पहचान हो जाती है और उन्हें बाकी लोगों से अलग कर दिया जाता है। संक्रमण कम फैलता है और आप पूरे देश को लॉकडाउन करने से भी बच सकते हैं।
मार्च महीने के दूसरे हफ्ते में ट्रंप प्रशासन ने वादा किया था कि वह महीने के अंत तक 50 लाख टेस्ट कराएंगे। हालांकि, एक विश्लेषण के मुताबिक, 30 मार्च तक सिर्फ 10 लाख के करीब ही टेस्ट किए गए हैं। ये संख्या दूसरे देशों की तुलना में ज्यादा है लेकिन अमेरिका की आबादी 33 करोड़ है। दूसरी तरफ, लैब में रिजल्ट के विश्लेषण में एक या उससे ज्यादा हफ्ते की देरी हो रही है जिससे लोगों को पता ही नहीं होता कि वे वायरस से संक्रमित हैं या नहीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश में कोरोना वायरस महामारी से पैदा हुई खतरनाक स्थिति का खांका खींचा। ट्रंप ने कहा कि वह चाहते हैं कि हर अमेरिकी आने वाले बेहद तकलीफदेह दिनों के लिए तैयार रहे। उनके स्वास्थ्य सलाहकारों ने एक चार्ट दिखाया। जिसमें तमाम उपायों के बावजूद कोरोना से एक लाख अमेरिकियों की मौत का अनुमान लगाया गया था।
बता दें कि कुछ हफ्ते पहले ही ट्रंप ने कहा था कि अप्रैल महीने से कारोबार फिर से पूरी तरह शुरू हो जाएंगे। जनवरी और फरवरी महीने में जब कोरोना वायरस चीन की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से तबाह कर चुका था और इटली में मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे थे तब ट्रंप ने इस खतरे को हल्के में लिया। ट्रंप और उनके अधिकारियों ने दावा किया कि स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में है और गर्मी तक यह किसी जादू की तरह गायब हो जाएगा। ट्रंप और शीर्ष नेतृत्व के लगातार बदलते बयान गंभीर समस्या है। प्रोफेसर लेवी कहते हैं, कोरोना वायरस महामारी के दौरान लगातार चीजें बदलती रहती हैं और आपके संदेश भी बदलते हैं। लेकिन इस मामले में किसी वैज्ञानिक संकेत या जमीनी हकीकत के आधार पर नहीं बल्कि राजनीतिक चिंताओं की वजह से बयान बदले गए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस मुश्किल वक्त में भी डेमोक्रेटिक स्टेट गवर्नरों से भिड़ रहे हैं। ट्रंप ने ट्विटर पर न्यू यॉर्क के गवर्नर एंड्रू कूमो और मिशीगन के ग्रेचेन व्हिटमर की ट्विटर पर निशाने पर लिया और कहा कि राज्य के नेताओं को संघीय सरकार की सराहना करनी चाहिए।
सोशल डिस्टैंसिंग का ठीक से लागू ना होना कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए सोशल डिस्टैंसिंग बेहद जरूरी है। लेकिन तमाम चेतावनियों के बावजूद अमेरिका के फ्लोरिडा बीच पर स्टूडेंट्स की भीड़ नहीं थमी। लुइसियाना की एक चर्च में भी हजारों की संख्या में लोग प्रार्थना करने पहुंचते रहे। चर्च के पादरी टोनी स्पेल से जब सवाल किए गए तो उन्होंने कहा, हमारा मानना है कि वायरस राजनीतिक रूप से प्रेरित है। हमारे सारे धार्मिक अधिकार सुरक्षित हैं और कुछ भी हो जाए, हम प्रार्थना के लिए इकठ्ठा होना नहीं छोड़ेंगे।
देश भर में तमाम उदाहरण मौजूद हैं जिससे जाहिर होता है कि सोशल डिस्टैंसिंग की अपील को अनदेखा किया जा रहा है। कई स्थानीय सरकारें और राज्य सरकारें भी कारोबार बंद करने और लोगों को घरों में बंद रखने की इच्छुक नहीं है इसलिए वे बहुत सख्ती नहीं दिखा रहे हैं। फ्लोरिडा बीच पर मौजूद एक लड़की ने सीबीएस न्यूज से कहा था, “अगर मुझे कोरोना होता है तो हो जाए, आखिरकार मैं इस वायरस को खुद को पार्टी करने से नहीं रोकने दूंगी।”