जानिए…आखिर क्यों मरने से पहले पाकिस्तान जाना चाहते थे ऋषि कपूर ?

बॉलीवुड एक्टर ऋषि कपूर ने 67 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। बता दें कि ऋषि कपूर कैंसर से जंग लड़ रहे थे लेकिन यह लड़ाई ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई। ऋषि, जिन्हें प्यार से लोग ‘चिंटू जी’ कहकर बुलाते थे, उनकी एक दिल की ख्वाहिश थी कि वह मरने से पहले एक बार पाकिस्तान जाना चाहते थे। साल 2017 ऋषि कपूर ने यह बात अपने ट्विटर पर लिखी थी कि मरने से पहले मैं एक बार पाकिस्तान देखना चाहता हूं।‘ ऋषि ने यह ट्वीट तब किया था जब जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने पीओके को लेकर एक बयान दिया था।
अब्दुल्ला ने कहा था कि पीओके, पाकिस्तान का है और इस बात को कोई नहीं बदल सकता है भले ही भारत और पाकिस्तान आपस में कितना ही लड़ लें।’ इसके बाद ऋषि ने फारूख के इस बयान पर रजामंदी भी जताई थी। ऋषि ने ट्विटर पर लिखा कि फारूख अब्दुल्ला जी सलाम! मैं आपसे रजामंद हूं। जम्मू कश्मीर हमारा है और पीओके उनका है। इसी तरह से हम इस समस्या को सुलझा सकते हैं। इसे स्वीकार करिए। मैं 65 साल का हूं और मरने से पहले एक बार पाकिस्ताहन देखना चाहता हूं। मरने से पहले मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चे अपनी जड़ों से रूबरू हों। बस करवा दीजिए। जय माता दी!‘
Farooq Abdhulla ji, Salaam! Totally agree with you,sir. J&K is ours, and PoK is theirs. This is the only way we can solve our problem. Accept it, I am 65 years old and I want to see Pakistan before I die. I want my children to see their roots. Bas karva Dijiye. Jai Mata Di !
— Rishi Kapoor (@chintskap) November 11, 2017
लेकिन आखिर ऐसा क्या था जो ऋषि दिल में पाकिस्तान जाने की ख्वाहिश लिए जी रहे थे। दरअसल, बॉलीवुड की फर्स्ट फैमिली के तौर पर मशहूर कपूर परिवार का पाकिस्तान से गहरा नाता है। इस परिवार का एक घर पेशावर में हैं और इसका निर्माण सन् 1918 से 1922 के बीच दीवान बशेश्व रनाथ कपूर ने करवाया था। वह ऋषि कपूर के दादा पृथ्वी राज कपूर पिता थे। सन् 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो कपूर खानदान पाकिस्तान से भारत आ गया। पेशावर के इस घर को ‘कपूर हवेली’ कहा गया और इसी हवेली में ऋषि के पिता और ‘शोमैन’ राजकपूर का जन्म सन् 1924 में हुआ था। बंटवारे के बाद कपूर खानदान भारत में रहने और यहां पर शिक्षा हासिल करने के मकसद से आया था। कपूर हवेली इस समय पेशावर के एक रिहायशी इलाके में मौजूद है। सन् 1968 में निलामी में छारसड्डा के एक बिजनेसमैन ने खरीद लिया था। बाद में एक आपसी समझौते के बाद इसे पेशावर के नागरिक को बेंच दिया गया। इस हवेली को अब पाकिस्तान की आईएमजीसी ग्लो बल एंटरटेनमेंट ने म्यूजियम में तब्दील कर दिया है।