निर्भया के दोषियों को 1 फरवरी को नहीं लगेगी फांसी, बताई ये वजह…

निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाने की तय तारीख एक बार फिर से टल गई है। अब निर्भया के दोषियों को 1 फरवरी को फांसी नहीं दी जाएगी। पटियाला हाउस कोर्ट ने अगले आदेश तक फांसी पर रोक लगा दी है। सुनवाई के दौरान तिहाड़ जेल ने कोर्ट से कहा है कि चाहें तो तय तारीख को 3 दोषियों को फांसी दी जा सकती है। दूसरी तरफ निर्भया की मां की तरफ से पेश वकील ने दलील दी कि दोषी फांसी से बचने के हथकंडे अपना रहे हैं।
Asha Devi, mother of the 2012 Delhi gang-rape victim: The lawyer of the convicts, AP Singh has challenged me saying that the convicts will never be executed. I will continue my fight. The government will have to execute the convicts. pic.twitter.com/NqihzqisQo
— ANI (@ANI) January 31, 2020
कोर्ट में तिहाड़ जेल की तरफ से इरफान अहमद पेश हुए। उन्होंने कहा कि फिलहाल बस विनय शर्मा की दया याचिका पेंडिंग है। बाकी तीनों को फांसी हो सकती है। उन्होंने कहा कि इसमें कुछ गैर कानूनी नहीं है। मुकेश की दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है और उसके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है। कोर्ट में अक्षय के वकील ने कहा है कि उसके मुवक्किल की क्यूरेटिव पिटिशन खारिज हो चुकी है और वह इस मामले में दया याचिका डालना चाहता है।
आज की सुनवाई में विनय की एक याचिका हाई कोर्ट में पेंडिंग होने की दलील दी गई है। यानी आसान शब्दों में समझे तो अभी तीन दोषियों के पास कानूनी विकल्प बचे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ही पवन गुप्ता की उस पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दी, जिसमें उसने खुद के नाबालिग होने का दावा किया था।
पवन गुप्ता की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई जस्टिस आर. भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस ए. एस. बोपन्ना की बेंच ने चेंबर में की। सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी को पवन की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उसने नाबालिग होने के अपने दावे को खारिज करने के, दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। फैसला आने से पहले मामले में पवन की ओर से पेश वकील एपी सिंह ने कहा कि उन्होंने शीर्ष न्यायालय के 20 जनवरी के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध करते हुए शुक्रवार को अपने मुवक्किल की ओर से एक याचिका दायर की। याचिका खारिज करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि पवन की याचिका को खारिज करने वाले उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है और उच्च न्यायालय के साथ-साथ निचली अदालत ने उसके दावे को सही तरीके से खारिज किया।