National Girl Child Day: देश की ये वो होनहार बेटियां जिन्होंने परिवार से लड़कर बनाई अपनी एक अलग पहचान

राष्ट्रीय बालिका दिवस भारत में हर साल 24 जनवरी को मनाया जाता है। समाज में महिलाओं के साथ हुए भेदभाव के खिलाफ एक अभियान के तौर इसे मनाया जाता है। भारत एक पुरुष प्रधान देश रहा है, जहां बेटियों और महिलाओं को कहीं ना कहीं पुरुषों से कम तरजीह दी जाती रही हैष हालांकि, अब हालात बदल रहे हैं और मौजूदा वक्त में लड़कियां भी लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। लोगों की सोच बदली है, अब समाज के लोग हर क्षेत्र में बेटियों को बेटों के मुकाबले बराबरी का दर्जा दे रहे हैं।
हमारे समाज में कई ऐसी बेटियां, बहुएं, महिलाएं हैं, जो अपने परिवार और सामाजिक भेदभाव से संघर्ष करके मेहनत, लगन से आगे बढ़ीं। नेशनल गर्ल चाइल्ड डे के मौके पर हम आपको ऐसी कुछ महिलाओं के बारे में बताएंगे। जिन्हें अपने परिवार में किसी ना किसी तरह भेदभाव का सामना करना पड़ा। चाहे वो शिक्षा का अधिकार हो या फिर सुरक्षा या सम्मान का। उनमें बॉलीवुड स्टार कंगना रनौत, कॉमेडियन भारती सिंह भी शामिल हैं।
कंगना रनौत
बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत ने तीन साल पहले अपने एक बयान में कहा था कि उनके जन्म पर परिवार में खुशी का माहौल नहीं था। कंगना अपने परिवार की अनचाही संतान थीं। एक्ट्रेस ने समाज में लोगों की पिछड़ी सोच के बारे में बात करते हुए कहा था कि कई घरों में लड़कियों के पैदा होने पर खुशी नहीं होती। कंगना ने आगे बताया कि ऐसे ही मेरे जन्मदिन पर परिवार में खुशी और जश्न का माहौल नहीं था। हालांकि, बाद में मीडिया रिपोर्ट्स में खबर आई थी कि उनके पिता ने कंगना की बात को खारिज करते हुए कहा कि कंगना के जन्म पर उन्होंने कभी अफसोस नहीं किया।
भारती सिंह
भारती सिंह एक ऐसी कॉमेडियन हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। बचपन से दर्द और आंखों में आंसू लेकर बड़ी हुई भारती सिंह आज देशभर में लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काम करती हैं। एक गरीब परिवार में जन्मी भारती सिंह अपने परिवार में सबसे छोटी हैं। भारती ने कई शोज में बताया कि जब वो अपनी मां के पेट में थीं, तो गरीबी के चलते उनकी मां उन्हें गर्भ में ही मार देना चाहती थीं। भारती की मां ने पेट में ही उन्हें मारने के लिए कई पैतरे अजामाए थे, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। मां की तमाम कोशिशों के बावजूद भारती स्वस्थ पैदा हुईं।
मायावती
अपने समर्थकों के बीच ‘बहनजी’ के नाम से मशहूर और पहली दलित मुख्यमंत्री मायावती की अपनी एक अलग पहचान है। मायावती को अपने ही घर में भेदभाव का सामना करना पड़ता था। मायावती ने दलित होने पर नहीं बल्कि लड़की होने पर भेदभाव का सामना किया था। इस बात का खुलासा मायावती की बायोग्राफी के लेखक अजय बोस ने अपनी किताब ‘बहनजी- बायोग्राफी ऑफ मायावती’ में भी किया है। मायावती पर लिखी किताब में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि परिवार से तंग आकर ही मायावती ने कांशीराम के साथ राजनीति में उतरने का फैसला किया था। दलित परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद मायावती ने अपने साहस और हिम्मत से राजनीति में कदम रखा और ऊंचाईयों को छुआ।
रश्मि देसाई
हिन्दी सीरियल में अपनी ऊंची पहचान बना चुकीं रश्मि देसाई ने भी अपने जीवन से जुड़े कुछ अनसुने किस्से बयां किए थे। रश्मि देसाई ने बताया था कि बचपन में उन्हें लड़की होने पर उनके घर से ही काफी ताने सुनने को मिलते थे। रश्मि ने कहा कि उनके पैदा होने पर उनकी मां को लोग काफी सुनाया करते थे, क्योंकि वो बहुत गरीब फैमिली से ताल्लुक रखती हैं। रश्मि ने बताया कि बचपन में लोग उन्हें मनहूस कहते थे। रश्मि ने ये भी बताया कि उन्हें उस समय लगा था कि लड़की होना एक बहुत बड़ा पाप है। रश्मि ने कहा कि उस वक्त उन्होंने एक गलती की थी कि उन्होंने जहर खा लिया था, क्योंकि उस समय उन्हें अपनी वैल्यू नहीं पता थी। उन्हें बस इतना पता था कि वो लड़की हैं और वो बोझ हैं।
मेरी कॉम
मणिपुर में एक गरीब परिवार में जन्म लेने वाली मेरी कॉम के परिजन नहीं चाहते थे कि वो बॉक्सिंग करें। मेरी कॉम को बचपन में टीवी पर मोहम्मद अली को मुक्केबाजी करते देखकर बॉक्सर बनने की प्रेरणा मिली। मेरी कॉम के पिता को उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता रहती थी। जिसकी वजह से शुरुआत में उनके बॉक्सिंग करने पर परिवार ने विरोध किया था। इसके बावजूद मेरी कॉम अपनी जिद पर अड़ी रहीं और उन्होंने बॉक्सिंग की ट्रेनिंग शुरू कर ग की. इसके बाद मेरी कॉम ने सफलता की ऐसी बुलंदियों को छुआ कि देश का दी। साल 2003 में मेरी कॉम को भारत सरकार ने अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया। मेरी कॉम एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज बनीं।